बेरहम तंत्र…मेरे सामने जो नोट फेंक जाता है
उसमें से बाहर निकलकर आता है…एक बूढ़ा क्रांतिकारी
झुककर देता है मुझे मेरा चश्मा
और कहता है………
`सत्यमेव जयते को फिर से पढ़ो और नया कुछ गढ़ो´
बेरहम तंत्र…मेरे सामने जो नोट फेंक जाता है
उसमें से बाहर निकलकर आता है…एक बूढ़ा क्रांतिकारी
झुककर देता है मुझे मेरा चश्मा
और कहता है………
`सत्यमेव जयते को फिर से पढ़ो और नया कुछ गढ़ो´
चेहरे वही हैं पहाड़ी शहर के.........हँसमुख और उदास चेहरे
वे हमें और हम उन्हें पहचानते हैं.......लेकिन जानते नहीं कि
वे हम हैं...........................या हम वे हैं